वो दीवारें अब नहीं पूछतीं मुझसे मेरे सुख दुःख जिन्हें हम तन्हा छोड़ आये ; वो दरवाज़े / वो खिड़कियाँ महरूम हैं मेरे हाथों के स्पर्श को, जैसे खुलना बंद होना ही भूल गए हों ; वो कमरे अब सन्नाटे की आगोश में भायं भायं करते होंगे, जो मेरे वहाँ रहने से गुलज़ार थे कभी ; हाँ मैं अपना पुराना मकान छोड़ आया हूँ ।