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Oct 3, 2010

तब क्या होगा

कितने बरस और
इस शहर से सच
नहीं बोलेगा दर्पण ;
हिंसा/हताशा,
कुंठा/निराशा,
असुरक्षा/तमाशा
आदि से बाहर निकल कर
जब सच खोलेगा दर्पण
"तब क्या होगा"
कोई बता सकता है ???

निरुत्तरित सवाल

ख़ामोशी के उस पार
पड़े हुए अनंत सवाल
जो अभी तक
राख़ होने से बच गए हैं ,
वो मेरी जिंदगी को
टुकड़ों में बाँट कर
आज भी निरुत्तरित हैं !!

संघर्ष बाकी है .......

अपने हिस्से का
संघर्ष करने के बाद
मेरा वज़ूद खुशियाँ
समेटने में लगा ही था
......... कि मेरे मस्तिष्क ने
अहंकार बोध से तुरंत
बाहर निकालते हुए
मुझसे कहा -
अभी बहुत संघर्ष बाकी है !!!

एक जन्म और

एक दिन यूँ ही
अगली सुबह तक
किसी की प्रतीक्षा में
मेरा एक जन्म और
हो गया जब मैंने
चुप रह कर सोचना
छोड़ दिया ....... ! !

पानी

पेट की हमदर्दी
की वजह से हम
अपना दर्द बढ़ाते
जा रहे हैं ........
और कमबख्त
पानी है कि
मुंह में आने से
बाज़ नहीं आता ।।

Apr 9, 2010

आँसू

सहेजने की इच्छा से
मैंने आँसू की एक बूंद
अपनी हथेली पर रख कर
मुट्ठी बंद कर ली ;
कुछ ही देर में
क्या देखता हूँ कि
मुट्ठी से आँसुओं की
धार बह चली ;
आँसू की वो एक बूंद
नदी हो गई ;
तब से मेरे आँसू निकले
सदी हो गई ,
इस डर से कि कहीं
सैलाब न आ जाये
और उस सैलाब में कहीं
ये संसार न समा जाये ॥

Apr 6, 2010

संवेदना की शून्यता

हाथ में लिए रोटी वो
ताकते हुए सितारों को
खा रहा था रोटी
करके छोटी छोटी
तभी अचानक किसी गहरी
सोच में डूब जाता है
और रोटी के बजाय
एक सितारे को खा जाता है
सितारा उसे भा जाता है
छोड़ के हाथ की रोटी
मुँह उठाये भागने लगता है
जाने क्या करता है
सडक पर चमचमाती
गाड़ियों का हजूम
तेज़ रफ़्तार से दौड़ रहा है
लेकिन वो सितारों के लिए
जी जान छोड़ रहा है
इतने में चिंचियाती हुई
गाड़ियाँ रुक जाती हैं
भीड़ चारों ओर
इकट्ठा हो जाती है
दुर्घटना देखती है
आपस में बतियाती है
और एक एक करके
बिखर जाती है
अपने अपने घर
चली जाती है
क्योंकि वो उनमें से
किसी की जान पहचान
वाला नहीं था
उन सब के लिए
अब वो आदमी
जान वाला नहीं था
इसलिए कौन उसे उठाता
संवेदना शून्य समाज
आखिर क्यों उसे
कफ़न ओढ़ाता ॥

Feb 7, 2010

प्रगतिशील बेटा

प्रगतिशील विचारों वाले लड़के से
फ्रेंडशिप डे पर बाप ने
हाथ मिला कर बधाई दी
और तपाक से कहा -
बेटा ! बाप से दोस्ती करोगे ?
तो बेटे ने नाक भौं सिकोड़ कर
अपनी माँ से कहा -
मम्मी, इस फारवर्ड ज़माने में
पापा आज भी कितने "बैकवर्ड" हैं ,
उनके पास मुझसे बात करने के लिए
कुछ विशिष्ट ही तो "वर्ड" हैं ;
मेरे दोस्तों के क्रम में वे "सिक्सटीथर्ड" हैं ।
इसलिए, बाप से और दोस्ती !?!
न ममा न, मुझे अपनी खुशियों का
खून नहीं कराना है ,
और अगले फ्रेंडशिप डे पर तो
पापा से हाथ भी नहीं मिलाना है ॥

Jan 24, 2010

निर्विवाद रूप से

मेरे मन मस्तिष्क पर
आच्छादित
भय की शाश्वतता जब
मेरी अनुभूतियों का
सानिध्य पाती है तो
निर्विवाद रूप से
इच्छा अनिच्छा की
सीमा तोड़कर
मेरी चेतना पर
संशय उपजा जाती है
तब मैं सन्देहयुक्त
अनिश्चयात्मक
जीवन की भंवर में
बिना पतवार की नाव सा
डूब रहा होता हूँ ॥