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Jun 5, 2010

तन्हा सफ़र में

एक कता-
हसरतों की दुनिया में क्या जीना
नफ़रतों की दुनिया में क्या जीना
मेरी चाहत मुझसे क्या पूछते हो ;
मतलबों की दुनिया में क्या जीना ।।

ग़ज़ल
जन्मों से थी दिल में वही बेक़रारी ।
कटी ज़िन्दगी न मिटी इन्तेज़ारी ॥
वादे पे जिनके हमें ऐतबार था ,
निभाई गयी न उनसे ही यारी ।
ख़्यालों में आ के वो छेड़े हैं हमको ,
उड़ा के है रख दी नीदें भी सारी ।
कोई जा के उनको मेरा हाल बताये ,
गुज़ारे हैं दिन कैसे रातें गुज़ारी ।
जिनके लिए हमने सितम भी उठाये ,
वही कर रहे शक़ वफ़ा पे हमारी ।
वो बड़े बेवफा और बेदर्द निकले ,
हमारे ही जिगर पे चलाये हैं आरी ।
मसरूफ़ है खुद में हमसफ़र हमारा ,
कहाँ तक निभाएं हम दुनियादारी ।
बहुत थक गए हम तन्हा सफ़र में ,
ख़त्म हो रही है यहीं मेरी पारी ।
किसी मोड़ पे मौत मिलेगी यक़ीनन ,
हमने भी मिलने की कर ली तय्यारी ।
अब तो करम मेरे ख़ुदा कर ही दीजे ,
कि 'राज़' आ गए हैं शरण में तुम्हारी ।

Mar 20, 2010

हम बेज़ार नहीं

एक कता- ज़िन्दगी की आस के लिएजला कर विशवास के दिए
आम जैसे हो कर भी हम ; जहाँ में कुछ ख़ास से जिए

हम ज़िन्दगी से बेज़ार नहीं लगते
अश्क बरसने के आसार नहीं लगते
हर हाल में क़ायम है खुश मिज़ाजी ;
तबस्सुम के हौसले बेकार नहीं लगते
जहाँ पोशीदा हो खुशियों की जवानी ;
वहां ग़म कभी सदाबहार नहीं लगते
जिन्हें हासिल हो ज़न्नत का क़रार ;
उनके जज़्बात कभी बेक़रार नहीं लगते
जो जीते हैं मक्कारी और फ़रेब की ज़िन्दगी ;
वो यक़ीनन हमें होशियार नहीं लगते
खुदगर्ज़ हुक्मरानों की इस दुनिया में ;
गरीबों के घरौंदे गुलज़ार नहीं लगते
जंगे हयात में गिर के जो उठे 'राज़';
वो हमें क़ामयाब शहसवार नहीं लगते

Feb 7, 2010

अहंकार नहीं होता

सच्चे ज्ञानियों को अहंकार नहीं होता ।
किसी तरह उनमें विकार नहीं होता ॥
ज्ञान ही उन्हें देता है सफलतायें ;
उनका जीवन कभी लाचार नहीं होता ।
सबसे मिलता है जो झुक कर हमेशा ;
उसका बिगड़ा हुआ संस्कार नहीं होता ।
उपकार करके यदि भुला दिया जाये ;
तो इससे बड़ा कोई उपकार नहीं होता ।
ज्ञान का भौतिक रूप कहाँ है यारों ;
सच, उसका कोई आकार नहीं होता ।
सच्चे अनुयायी न मिलने पर "राज़";
ज्ञानियों का सपना साकार नहीं होता ॥

Jan 30, 2010

दिल सबसे अच्छी किताब है .

दिल वस्तुतः संसार में सबसे अच्छी किताब है ।
हम यदि अच्छे होवेंगे, तो कोई नहीं ख़राब है । ।
जलन, ईर्ष्या, द्वेष - भावना देती है अपार कष्ट ,
ह्रदय कोष्ठ में बंद रखें, ये उमड़ती हुई चिनाब है ।
रूप-रंग, शरीर- सौष्ठव, यदि सुंदर न हो तो क्या,
नेक दिली ही इन्सान का सर्वोत्तम शबाब है।
निर्व्यस्नित इंसानियत लावें अपने व्यव्हार में,
प्रशस्ति, मान, प्रसिद्धि-प्राप्ति का अच्छा यही हिसाब है।
सुकर्म, शीलता, सौम्यपन, ये मानवता के गहने हैं ,
ओढ़ सको तो ओढ़ लो यारों, अच्छी यही नक़ाब है।
इस 'राज़' की तारीफ़ में लिखे क्या कलम उसकी ,
जो साथ रहे वो ही समझे, क्या राजीव 'राज़' जनाब है ॥

Jan 5, 2010

ग़ज़ल

प्यार जिस्मानी अच्छा लगे है.

इश्क रूहानी अच्छा लगे है.

मोहब्बत का जज़्बाती ख़याल;

सारी ज़िन्दगानी अच्छा लगे है.

उनकी उल्फत मेरी मैसहत;

बड़ी मेहरबानी अच्छा लगे है.

मय प्यार की पीकर शब;

खूब मस्तानी अच्छा लगे है.

दौर-ए- वस्ल उभरता पसीना;

उनकी पेशानी अच्छा लगे है.

नज़रें मिली तो यक-ब-यक;

हुई पशेमानी अच्छा लगे है.

उनके करम से मेरे चमन में;

नई निशानी अच्छा लगे है.

उनके दिल में जवान ‘राज’ की;

वही शैतानी अच्छा लगे है.


मैसहत= जिंदगी.

पशेमानी = शर्मिंदगी.