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Jun 5, 2010

तन्हा सफ़र में

एक कता-
हसरतों की दुनिया में क्या जीना
नफ़रतों की दुनिया में क्या जीना
मेरी चाहत मुझसे क्या पूछते हो ;
मतलबों की दुनिया में क्या जीना ।।

ग़ज़ल
जन्मों से थी दिल में वही बेक़रारी ।
कटी ज़िन्दगी न मिटी इन्तेज़ारी ॥
वादे पे जिनके हमें ऐतबार था ,
निभाई गयी न उनसे ही यारी ।
ख़्यालों में आ के वो छेड़े हैं हमको ,
उड़ा के है रख दी नीदें भी सारी ।
कोई जा के उनको मेरा हाल बताये ,
गुज़ारे हैं दिन कैसे रातें गुज़ारी ।
जिनके लिए हमने सितम भी उठाये ,
वही कर रहे शक़ वफ़ा पे हमारी ।
वो बड़े बेवफा और बेदर्द निकले ,
हमारे ही जिगर पे चलाये हैं आरी ।
मसरूफ़ है खुद में हमसफ़र हमारा ,
कहाँ तक निभाएं हम दुनियादारी ।
बहुत थक गए हम तन्हा सफ़र में ,
ख़त्म हो रही है यहीं मेरी पारी ।
किसी मोड़ पे मौत मिलेगी यक़ीनन ,
हमने भी मिलने की कर ली तय्यारी ।
अब तो करम मेरे ख़ुदा कर ही दीजे ,
कि 'राज़' आ गए हैं शरण में तुम्हारी ।