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Oct 3, 2010

तब क्या होगा

कितने बरस और
इस शहर से सच
नहीं बोलेगा दर्पण ;
हिंसा/हताशा,
कुंठा/निराशा,
असुरक्षा/तमाशा
आदि से बाहर निकल कर
जब सच खोलेगा दर्पण
"तब क्या होगा"
कोई बता सकता है ???

निरुत्तरित सवाल

ख़ामोशी के उस पार
पड़े हुए अनंत सवाल
जो अभी तक
राख़ होने से बच गए हैं ,
वो मेरी जिंदगी को
टुकड़ों में बाँट कर
आज भी निरुत्तरित हैं !!

संघर्ष बाकी है .......

अपने हिस्से का
संघर्ष करने के बाद
मेरा वज़ूद खुशियाँ
समेटने में लगा ही था
......... कि मेरे मस्तिष्क ने
अहंकार बोध से तुरंत
बाहर निकालते हुए
मुझसे कहा -
अभी बहुत संघर्ष बाकी है !!!

एक जन्म और

एक दिन यूँ ही
अगली सुबह तक
किसी की प्रतीक्षा में
मेरा एक जन्म और
हो गया जब मैंने
चुप रह कर सोचना
छोड़ दिया ....... ! !

पानी

पेट की हमदर्दी
की वजह से हम
अपना दर्द बढ़ाते
जा रहे हैं ........
और कमबख्त
पानी है कि
मुंह में आने से
बाज़ नहीं आता ।।

Aug 13, 2010

हारेंगे ना हम हारे हैं

अपनों की तादात बहुत है,
फिर भी ख़ाली जीवन के पल।
हर मौसम बदहाल हुए हैं,
वक़्त गुज़ारा तन्हा बेकल।
किसे सुनाएँ किसकी सुने हम
कोई नहीं है मेरा हमदम;
सुस्त ज़िन्दगी गुज़र रही है,
सुप्त अवस्था में है हलचल।
कष्ट दिए हैं अनुबंधों ने;
मुझको जीवन संबंधों ने;
ख़ुशी की कोशिश रही नाकाम,
टूट गए सब शीशमहल।
मेरे तन में भी इक दिल है;
लेकिन इसके संग मुश्किल है;
ग़ैरों की क्या बात करें हम,
अपने ही करते इसको घायल।
लम्हा भी हो गया है ताजिर;
लिए बिना न होता हाज़िर;
खुदगर्ज़ी की धार में बहके,
करता सारे प्रयास निष्फल।
मुश्किल थी पर कुछ भारी थी;
तन्हाई में खुद्दारी थी;
उलझ गए हम यूँ उलझन में,
निकल सका न कोई भी हल।
हारेंगे ना हम हारे हैं;
अपने नभ के ध्रुव तारे हैं;
राज़ बतायें अब क्या यारों,
पहले भी थे अब भी मुकम्मल।
अपनों की तादात बहुत है,
फिर भी ख़ाली जीवन के पल ..................।।

Aug 12, 2010

शलभ सरीखे

जब जब कुछ भी लूटा हमने,
तब तब कुछ कुछ लुटे भी हम हैं।
घुल मिल घुल मिल रहते रहते,
कभी कभी कुछ कटे भी हम हैं।
बचपन में थी बुद्धि छोटी,
सुख दुःख तब हम समझ न पाए;
युवा काल में स्वप्न सुनहले,
मदमाते से हरदम लहराए;
श्रृंगारित यौवन के स्पर्श से,
तृप्त होने तक सटे भी हम हैं।
जब पहनावे से होते देखा,
जग में मान सम्मान;
हमने भी तब पहने अक्सर,
नए नए परिधान;
लेकिन उसके भीतर भीतर ,
चीथड़ों से फटे भी हम हैं।
आँधी से न डरे कभी भी,
लगा न डर तूफ़ानों से;
गठबंधन जब किया मृत्यु से,
रिश्ता बना शमशानों से;
जब भी वार किया मुसीबतों ने,
डिगे नहीं और डटे भी हम हैं।
क्षण भंगुर से इस जीवन में,
झंझावातों के रहे ठिकाने;
भंवर से उबरे तट में डूबे,
जीवन नइया पार लगाने;
कुछ कुछ तो आराम किया था,
लेकिन ज्यादा खटे भी हम हैं।
हवाओं और तरंगों में हरदम,
निनादित होवे बस ये नारा;
सद्भावों के सौजन्य से फैले,
जन गण मन में भाई चारा;
तभी तो हर त्योहारों पे हरदम,
ख़ुशी मनाने जुटे भी हम हैं ।
अपनी सारी व्यथाओं के संग,
काल धार में बहे बहे हम;
शलभ सरीखे आत्माहुति को,
हरदम ही तैयार रहे हम;
रुष्ट रहे थे अनिर्णय में तो,
निर्णीत पलों में पटे भी हम हैं।











Jun 5, 2010

तन्हा सफ़र में

एक कता-
हसरतों की दुनिया में क्या जीना
नफ़रतों की दुनिया में क्या जीना
मेरी चाहत मुझसे क्या पूछते हो ;
मतलबों की दुनिया में क्या जीना ।।

ग़ज़ल
जन्मों से थी दिल में वही बेक़रारी ।
कटी ज़िन्दगी न मिटी इन्तेज़ारी ॥
वादे पे जिनके हमें ऐतबार था ,
निभाई गयी न उनसे ही यारी ।
ख़्यालों में आ के वो छेड़े हैं हमको ,
उड़ा के है रख दी नीदें भी सारी ।
कोई जा के उनको मेरा हाल बताये ,
गुज़ारे हैं दिन कैसे रातें गुज़ारी ।
जिनके लिए हमने सितम भी उठाये ,
वही कर रहे शक़ वफ़ा पे हमारी ।
वो बड़े बेवफा और बेदर्द निकले ,
हमारे ही जिगर पे चलाये हैं आरी ।
मसरूफ़ है खुद में हमसफ़र हमारा ,
कहाँ तक निभाएं हम दुनियादारी ।
बहुत थक गए हम तन्हा सफ़र में ,
ख़त्म हो रही है यहीं मेरी पारी ।
किसी मोड़ पे मौत मिलेगी यक़ीनन ,
हमने भी मिलने की कर ली तय्यारी ।
अब तो करम मेरे ख़ुदा कर ही दीजे ,
कि 'राज़' आ गए हैं शरण में तुम्हारी ।

Apr 9, 2010

आँसू

सहेजने की इच्छा से
मैंने आँसू की एक बूंद
अपनी हथेली पर रख कर
मुट्ठी बंद कर ली ;
कुछ ही देर में
क्या देखता हूँ कि
मुट्ठी से आँसुओं की
धार बह चली ;
आँसू की वो एक बूंद
नदी हो गई ;
तब से मेरे आँसू निकले
सदी हो गई ,
इस डर से कि कहीं
सैलाब न आ जाये
और उस सैलाब में कहीं
ये संसार न समा जाये ॥

Apr 6, 2010

संवेदना की शून्यता

हाथ में लिए रोटी वो
ताकते हुए सितारों को
खा रहा था रोटी
करके छोटी छोटी
तभी अचानक किसी गहरी
सोच में डूब जाता है
और रोटी के बजाय
एक सितारे को खा जाता है
सितारा उसे भा जाता है
छोड़ के हाथ की रोटी
मुँह उठाये भागने लगता है
जाने क्या करता है
सडक पर चमचमाती
गाड़ियों का हजूम
तेज़ रफ़्तार से दौड़ रहा है
लेकिन वो सितारों के लिए
जी जान छोड़ रहा है
इतने में चिंचियाती हुई
गाड़ियाँ रुक जाती हैं
भीड़ चारों ओर
इकट्ठा हो जाती है
दुर्घटना देखती है
आपस में बतियाती है
और एक एक करके
बिखर जाती है
अपने अपने घर
चली जाती है
क्योंकि वो उनमें से
किसी की जान पहचान
वाला नहीं था
उन सब के लिए
अब वो आदमी
जान वाला नहीं था
इसलिए कौन उसे उठाता
संवेदना शून्य समाज
आखिर क्यों उसे
कफ़न ओढ़ाता ॥

Mar 20, 2010

हम बेज़ार नहीं

एक कता- ज़िन्दगी की आस के लिएजला कर विशवास के दिए
आम जैसे हो कर भी हम ; जहाँ में कुछ ख़ास से जिए

हम ज़िन्दगी से बेज़ार नहीं लगते
अश्क बरसने के आसार नहीं लगते
हर हाल में क़ायम है खुश मिज़ाजी ;
तबस्सुम के हौसले बेकार नहीं लगते
जहाँ पोशीदा हो खुशियों की जवानी ;
वहां ग़म कभी सदाबहार नहीं लगते
जिन्हें हासिल हो ज़न्नत का क़रार ;
उनके जज़्बात कभी बेक़रार नहीं लगते
जो जीते हैं मक्कारी और फ़रेब की ज़िन्दगी ;
वो यक़ीनन हमें होशियार नहीं लगते
खुदगर्ज़ हुक्मरानों की इस दुनिया में ;
गरीबों के घरौंदे गुलज़ार नहीं लगते
जंगे हयात में गिर के जो उठे 'राज़';
वो हमें क़ामयाब शहसवार नहीं लगते

Feb 7, 2010

अहंकार नहीं होता

सच्चे ज्ञानियों को अहंकार नहीं होता ।
किसी तरह उनमें विकार नहीं होता ॥
ज्ञान ही उन्हें देता है सफलतायें ;
उनका जीवन कभी लाचार नहीं होता ।
सबसे मिलता है जो झुक कर हमेशा ;
उसका बिगड़ा हुआ संस्कार नहीं होता ।
उपकार करके यदि भुला दिया जाये ;
तो इससे बड़ा कोई उपकार नहीं होता ।
ज्ञान का भौतिक रूप कहाँ है यारों ;
सच, उसका कोई आकार नहीं होता ।
सच्चे अनुयायी न मिलने पर "राज़";
ज्ञानियों का सपना साकार नहीं होता ॥

प्रगतिशील बेटा

प्रगतिशील विचारों वाले लड़के से
फ्रेंडशिप डे पर बाप ने
हाथ मिला कर बधाई दी
और तपाक से कहा -
बेटा ! बाप से दोस्ती करोगे ?
तो बेटे ने नाक भौं सिकोड़ कर
अपनी माँ से कहा -
मम्मी, इस फारवर्ड ज़माने में
पापा आज भी कितने "बैकवर्ड" हैं ,
उनके पास मुझसे बात करने के लिए
कुछ विशिष्ट ही तो "वर्ड" हैं ;
मेरे दोस्तों के क्रम में वे "सिक्सटीथर्ड" हैं ।
इसलिए, बाप से और दोस्ती !?!
न ममा न, मुझे अपनी खुशियों का
खून नहीं कराना है ,
और अगले फ्रेंडशिप डे पर तो
पापा से हाथ भी नहीं मिलाना है ॥

Jan 30, 2010

दिल सबसे अच्छी किताब है .

दिल वस्तुतः संसार में सबसे अच्छी किताब है ।
हम यदि अच्छे होवेंगे, तो कोई नहीं ख़राब है । ।
जलन, ईर्ष्या, द्वेष - भावना देती है अपार कष्ट ,
ह्रदय कोष्ठ में बंद रखें, ये उमड़ती हुई चिनाब है ।
रूप-रंग, शरीर- सौष्ठव, यदि सुंदर न हो तो क्या,
नेक दिली ही इन्सान का सर्वोत्तम शबाब है।
निर्व्यस्नित इंसानियत लावें अपने व्यव्हार में,
प्रशस्ति, मान, प्रसिद्धि-प्राप्ति का अच्छा यही हिसाब है।
सुकर्म, शीलता, सौम्यपन, ये मानवता के गहने हैं ,
ओढ़ सको तो ओढ़ लो यारों, अच्छी यही नक़ाब है।
इस 'राज़' की तारीफ़ में लिखे क्या कलम उसकी ,
जो साथ रहे वो ही समझे, क्या राजीव 'राज़' जनाब है ॥

Jan 24, 2010

निर्विवाद रूप से

मेरे मन मस्तिष्क पर
आच्छादित
भय की शाश्वतता जब
मेरी अनुभूतियों का
सानिध्य पाती है तो
निर्विवाद रूप से
इच्छा अनिच्छा की
सीमा तोड़कर
मेरी चेतना पर
संशय उपजा जाती है
तब मैं सन्देहयुक्त
अनिश्चयात्मक
जीवन की भंवर में
बिना पतवार की नाव सा
डूब रहा होता हूँ ॥

Jan 14, 2010

ये दुनिया बड़ी खतरनाक हो गई ।
ख़ुशी की घड़ी दर्दनाक हो गई ।
लुट रही अस्मत सरे राह बच्चियों की ;
फिर एक घटना शर्मनाक हो गई ॥

निज़ाम मदहोश होंगे जब तक ।
एहसान फ़रामोश होंगे जब तक ।
कौन सुनेगा मज़लूमों की आवाज़ ;
लोग ख़ामोश होंगे जब तक ॥

हर तरफ़ देखिये भूखे नंगों की बस्ती ।
देर नहीं लगती यहाँ मिटने में हस्ती ।
क्या था अब क्या है हिन्दोस्ताँ हमारा ;
जहाँ ज़िंदगी महंगी पर मौत है सस्ती ॥

ये उसकी दी हुई निशानी है ।
मेरी अखियों में जो पानी है ।
देता है दिल दुआएं बार बार ;
उस बेवफा की मेहरबानी है ॥

Jan 13, 2010

नया साल आया

हाइकु - काव्य की जापानी विधा जिसमें पहली लाइन में पांच, दूसरी लाइन में सात, एवं तीसरी लाइन में पांच अक्षरों का प्रयोग होता है तथा इसमें मात्राओं एवं आधे अक्षरों का ध्यान नहीं किया जाता । उसी तर्ज़ पर मैंने अपनी विधा "छकुईं" का सृजन किया है । इसमें मात्राओं एवं आधे अक्षरों का ध्यान न रखते हुए प्रत्येक लाइन में छह अक्षरों का प्रयोग किया गया है।
इस विधा की मेरी पहली कृति प्रस्तुत है -

नया साल आया । रंग सारे लाया ।
नया साल आया ॥
सूरज नवीन । चंद्रमा हसीन ।
फिर उगा लाया । नया साल आया ॥
हमनशीन से । तारे ज़मीन पे ।
बिछा कर लाया । नया साल आया ॥
कहीं नहीं झुका । रोके नहीं रुका ।
बेधड़क आया । नया साल आया ॥
ओल्ड को धकेला । बोल्ड हो अकेला ।
गोल्ड बन आया। नया साल आया ॥
होकर निडर । सिल्वर कल्चर ।
सिखाने को आया । नया साल आया ॥
सभी सोल्यूशन । न्यू रिसोल्यूशन ।
बनवाने आया । नया साल आया ॥
विस्तार अपार । लेकर के प्यार ।
दिल में समाया । नया साल आया ॥
भुलाने को ग़म । मस्ती का आलम ।
उठा ही तो लाया । नया साल आया ॥
सभी मुस्कुराएं । व खिलखिलाएं ।
ये सन्देश लाया । नया साल आया ॥
ख़त्म होवें कष्ट । मिटें सारे भ्रष्ट ।
यूँ हरहराया । नया साल आया ॥
नया सा अंदाज़ । छकुईं का राज ।
बढ़वाने आया । नया साल आया ॥
नया साल आया ॥

Jan 11, 2010

ग़ज़ल- ठण्ड ज्यादा थी

धरा से धूप तो सारा दिन बिदकती रही ।
ठण्ड ज्यादा थी, जिंदगी ठिठुरती रही ।।
जवानी पा के सर्दी ने कहर खूब बरपाया,
और हालत गरीबों की यहाँ बिगड़ती रही।
संवेदनहीन से हम सब घरों में दुबके रहे,
बला से हमारे उनकी दुनिया उजड़ती रही।
हाकिमों को कोई चिंता कोई फ़र्क पड़ा,
अलाव थे सड़कों पे मौत बिखरती रही।
कोहरे की चादर में लिपटी सड़क भी,
हठीले हादसों के दौर से गुज़रती रही
काँप रही थी हवा भी शीत के दर से,
ग़र्म बदनों से वो भी लिपटती रही।
गर्मी को भी सर्दी का डर सताता रहा,
इसीलिए वो भी बिस्तरों में दुबकती रही।
ढलना सूरज की मज़बूरी है ऐसा सोच कर,
कल रात भी रातभर तन्हा सुबकती रही।
जन जीवन भी अस्त व्यस्त हो गया था "राज़",
चहलकदमी सभी की यहाँ सिमटती रही।।

Jan 10, 2010

दर्द बहुत गहरा था

लोगों का दर्द बहुत गहरा था ।
मगर उनका खुदा बहरा था ।
सहमे सहमे से लोग थे शहर में ,
मौत का परचम फिर से फहरा था ।
जिनके बच्चे घर से बाहर गए थे ,
डरा हुआ उन माओं का चेहरा था ।
उनकी ऑंखें नम हो न सकीं ,
सूखे आंसू , भीतर अंतहीन सहरा था ।
हंसता मुस्कराता भी कोई कैसे ,
आतंक का मुसलसल पहरा था ।
अभी कल की ही बात हो जैसे ,
ज़ख्म हर किसी का हरा था ।
दगाबाज़ी के जश्न थे हर मोड़ पर,
"राज़" ठिठक कर जहाँ ठहरा था ॥

Jan 5, 2010

ग़ज़ल

प्यार जिस्मानी अच्छा लगे है.

इश्क रूहानी अच्छा लगे है.

मोहब्बत का जज़्बाती ख़याल;

सारी ज़िन्दगानी अच्छा लगे है.

उनकी उल्फत मेरी मैसहत;

बड़ी मेहरबानी अच्छा लगे है.

मय प्यार की पीकर शब;

खूब मस्तानी अच्छा लगे है.

दौर-ए- वस्ल उभरता पसीना;

उनकी पेशानी अच्छा लगे है.

नज़रें मिली तो यक-ब-यक;

हुई पशेमानी अच्छा लगे है.

उनके करम से मेरे चमन में;

नई निशानी अच्छा लगे है.

उनके दिल में जवान ‘राज’ की;

वही शैतानी अच्छा लगे है.


मैसहत= जिंदगी.

पशेमानी = शर्मिंदगी.