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Mar 20, 2010

हम बेज़ार नहीं

एक कता- ज़िन्दगी की आस के लिएजला कर विशवास के दिए
आम जैसे हो कर भी हम ; जहाँ में कुछ ख़ास से जिए

हम ज़िन्दगी से बेज़ार नहीं लगते
अश्क बरसने के आसार नहीं लगते
हर हाल में क़ायम है खुश मिज़ाजी ;
तबस्सुम के हौसले बेकार नहीं लगते
जहाँ पोशीदा हो खुशियों की जवानी ;
वहां ग़म कभी सदाबहार नहीं लगते
जिन्हें हासिल हो ज़न्नत का क़रार ;
उनके जज़्बात कभी बेक़रार नहीं लगते
जो जीते हैं मक्कारी और फ़रेब की ज़िन्दगी ;
वो यक़ीनन हमें होशियार नहीं लगते
खुदगर्ज़ हुक्मरानों की इस दुनिया में ;
गरीबों के घरौंदे गुलज़ार नहीं लगते
जंगे हयात में गिर के जो उठे 'राज़';
वो हमें क़ामयाब शहसवार नहीं लगते