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Feb 9, 2018

हो रही है ......



देखिए तो सियासत हो रही है ।
बस जंग की रवायत हाे रही है ।

मुफ़लिसों का न कोई फ़िक्रमंद;
क़ियामत पे क़ियामत हो रही है ।

इश्क़ में मेरी दीवानगी है यारों;
मुहब्बत की इबादत हो रही है ।

पाँव सम्हल के रखती उल्फ़त;
क्या ख़ूब नज़ाकत हो रही है ।

उसकी मस्तानी चाल देखकर;
मेरे दिल में हरारत हो रही है ।

मेरी हमसफ़र की छुप छुपके;
शबो-रोज़ शरारत हो रही है ।

अंदाज़ प्यार का बदला 'राज़';
उसकी बड़ी इनायत हो रही है ।

******निगम'राज़'

Nov 3, 2011

हम प्यार करें

हम प्यार करें ।।
मिलें जब जब , जुटें तब तब ,
न विचार करें ; हम प्यार करें ।।
न हो उम्र सीमा , भले धीमा धीमा ,
चलो यार करें ; हम प्यार करें ।।
इश्क़ इश्क़ इश्क़ , छुपे नहीं मुश्क़ ,
इक़रार करें ; हम प्यार करें ।।
रास्तों के पत्थर , हाथों में लेकर ,
लोग वार करें ; हम प्यार करें ।।
वक़्त का तक़ाज़ा , दे कर खाम्याज़ा ,
बार बार करें ; हम प्यार करें ।।

Apr 27, 2011

हम तेरे शहर से जाते हैं

हम तेरे शहर से जाते हैं अजनबी की तरह ;
तुम किसी से कभी इस बात का चर्चा करना ।
एक दूजे से कभी शिकवे न गिला करते थे ;
हम जो छुप छुप के अजी छत पे मिला करते थे ;
तुम किसी से कभी इस मुलाक़ात का चर्चा करना ।
हम तेरे शहर से जाते हैं अजनबी की तरह ।
मेरी बसती हुई दुनिया का उजड़ना ऐसे ;
हर हसीं ख़्वाब का बन के बिखरना ऐसे ;
तुम किसी से कभी इस हालात का चर्चा करना ।
हम तेरे शहर से जाते हैं अजनबी की तरह ।
हम छुपायेंगे सदा अपने सभी दर्द-ओ-ग़म ।
डबडबाती हुई आँखों में भरे पानी की क़सम ।
तुम किसी से कभी इन ख्यालात का चर्चा करना ।
हम तेरे शहर से जाते हैं अजनबी की तरह ।
आज के बाद हम कभी मुड़के न आएंगे इधर ;
भटकते ही फिरेंगे किसी और गली और शहर ;
तुम मेरी भटकती हुई क़ायनात का चर्चा करना ।
हम तेरे शहर से जाते हैं अजनबी की तरह ॥








Oct 3, 2010

तब क्या होगा

कितने बरस और
इस शहर से सच
नहीं बोलेगा दर्पण ;
हिंसा/हताशा,
कुंठा/निराशा,
असुरक्षा/तमाशा
आदि से बाहर निकल कर
जब सच खोलेगा दर्पण
"तब क्या होगा"
कोई बता सकता है ???

निरुत्तरित सवाल

ख़ामोशी के उस पार
पड़े हुए अनंत सवाल
जो अभी तक
राख़ होने से बच गए हैं ,
वो मेरी जिंदगी को
टुकड़ों में बाँट कर
आज भी निरुत्तरित हैं !!

संघर्ष बाकी है .......

अपने हिस्से का
संघर्ष करने के बाद
मेरा वज़ूद खुशियाँ
समेटने में लगा ही था
......... कि मेरे मस्तिष्क ने
अहंकार बोध से तुरंत
बाहर निकालते हुए
मुझसे कहा -
अभी बहुत संघर्ष बाकी है !!!

एक जन्म और

एक दिन यूँ ही
अगली सुबह तक
किसी की प्रतीक्षा में
मेरा एक जन्म और
हो गया जब मैंने
चुप रह कर सोचना
छोड़ दिया ....... ! !