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Dec 23, 2009

मकान की यादें


वो दीवारें अब नहीं पूछतीं
मुझसे मेरे सुख दुःख
जिन्हें हम तन्हा छोड़ आये ;
वो दरवाज़े / वो खिड़कियाँ
महरूम हैं मेरे हाथों के स्पर्श को,
जैसे खुलना बंद होना ही भूल गए हों ;
वो कमरे अब सन्नाटे की आगोश में
भायं भायं करते होंगे,
जो मेरे वहाँ रहने से गुलज़ार थे कभी ;
हाँ मैं अपना पुराना मकान छोड़ आया हूँ ।

-07.08.09 - 03.00 बजे

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