Search This Blog

Apr 6, 2010

संवेदना की शून्यता

हाथ में लिए रोटी वो
ताकते हुए सितारों को
खा रहा था रोटी
करके छोटी छोटी
तभी अचानक किसी गहरी
सोच में डूब जाता है
और रोटी के बजाय
एक सितारे को खा जाता है
सितारा उसे भा जाता है
छोड़ के हाथ की रोटी
मुँह उठाये भागने लगता है
जाने क्या करता है
सडक पर चमचमाती
गाड़ियों का हजूम
तेज़ रफ़्तार से दौड़ रहा है
लेकिन वो सितारों के लिए
जी जान छोड़ रहा है
इतने में चिंचियाती हुई
गाड़ियाँ रुक जाती हैं
भीड़ चारों ओर
इकट्ठा हो जाती है
दुर्घटना देखती है
आपस में बतियाती है
और एक एक करके
बिखर जाती है
अपने अपने घर
चली जाती है
क्योंकि वो उनमें से
किसी की जान पहचान
वाला नहीं था
उन सब के लिए
अब वो आदमी
जान वाला नहीं था
इसलिए कौन उसे उठाता
संवेदना शून्य समाज
आखिर क्यों उसे
कफ़न ओढ़ाता ॥

No comments:

Post a Comment