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Apr 27, 2011

हम तेरे शहर से जाते हैं

हम तेरे शहर से जाते हैं अजनबी की तरह ;
तुम किसी से कभी इस बात का चर्चा करना ।
एक दूजे से कभी शिकवे न गिला करते थे ;
हम जो छुप छुप के अजी छत पे मिला करते थे ;
तुम किसी से कभी इस मुलाक़ात का चर्चा करना ।
हम तेरे शहर से जाते हैं अजनबी की तरह ।
मेरी बसती हुई दुनिया का उजड़ना ऐसे ;
हर हसीं ख़्वाब का बन के बिखरना ऐसे ;
तुम किसी से कभी इस हालात का चर्चा करना ।
हम तेरे शहर से जाते हैं अजनबी की तरह ।
हम छुपायेंगे सदा अपने सभी दर्द-ओ-ग़म ।
डबडबाती हुई आँखों में भरे पानी की क़सम ।
तुम किसी से कभी इन ख्यालात का चर्चा करना ।
हम तेरे शहर से जाते हैं अजनबी की तरह ।
आज के बाद हम कभी मुड़के न आएंगे इधर ;
भटकते ही फिरेंगे किसी और गली और शहर ;
तुम मेरी भटकती हुई क़ायनात का चर्चा करना ।
हम तेरे शहर से जाते हैं अजनबी की तरह ॥








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