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Apr 9, 2010

आँसू

सहेजने की इच्छा से
मैंने आँसू की एक बूंद
अपनी हथेली पर रख कर
मुट्ठी बंद कर ली ;
कुछ ही देर में
क्या देखता हूँ कि
मुट्ठी से आँसुओं की
धार बह चली ;
आँसू की वो एक बूंद
नदी हो गई ;
तब से मेरे आँसू निकले
सदी हो गई ,
इस डर से कि कहीं
सैलाब न आ जाये
और उस सैलाब में कहीं
ये संसार न समा जाये ॥

2 comments:

  1. बढ़िया लिखा । अनुभूतियों का उपयुक्त शब्दों में वर्णन...."

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  2. हर रंग को आपने बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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