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Jan 5, 2010

ग़ज़ल

प्यार जिस्मानी अच्छा लगे है.

इश्क रूहानी अच्छा लगे है.

मोहब्बत का जज़्बाती ख़याल;

सारी ज़िन्दगानी अच्छा लगे है.

उनकी उल्फत मेरी मैसहत;

बड़ी मेहरबानी अच्छा लगे है.

मय प्यार की पीकर शब;

खूब मस्तानी अच्छा लगे है.

दौर-ए- वस्ल उभरता पसीना;

उनकी पेशानी अच्छा लगे है.

नज़रें मिली तो यक-ब-यक;

हुई पशेमानी अच्छा लगे है.

उनके करम से मेरे चमन में;

नई निशानी अच्छा लगे है.

उनके दिल में जवान ‘राज’ की;

वही शैतानी अच्छा लगे है.


मैसहत= जिंदगी.

पशेमानी = शर्मिंदगी.

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