मेरे मन मस्तिष्क पर
आच्छादित
भय की शाश्वतता जब
मेरी अनुभूतियों का
सानिध्य पाती है तो
निर्विवाद रूप से
इच्छा अनिच्छा की
सीमा तोड़कर
मेरी चेतना पर
संशय उपजा जाती है
तब मैं सन्देहयुक्त
अनिश्चयात्मक
जीवन की भंवर में
बिना पतवार की नाव सा
डूब रहा होता हूँ ॥
रुको !!
8 years ago
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