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Aug 13, 2010

हारेंगे ना हम हारे हैं

अपनों की तादात बहुत है,
फिर भी ख़ाली जीवन के पल।
हर मौसम बदहाल हुए हैं,
वक़्त गुज़ारा तन्हा बेकल।
किसे सुनाएँ किसकी सुने हम
कोई नहीं है मेरा हमदम;
सुस्त ज़िन्दगी गुज़र रही है,
सुप्त अवस्था में है हलचल।
कष्ट दिए हैं अनुबंधों ने;
मुझको जीवन संबंधों ने;
ख़ुशी की कोशिश रही नाकाम,
टूट गए सब शीशमहल।
मेरे तन में भी इक दिल है;
लेकिन इसके संग मुश्किल है;
ग़ैरों की क्या बात करें हम,
अपने ही करते इसको घायल।
लम्हा भी हो गया है ताजिर;
लिए बिना न होता हाज़िर;
खुदगर्ज़ी की धार में बहके,
करता सारे प्रयास निष्फल।
मुश्किल थी पर कुछ भारी थी;
तन्हाई में खुद्दारी थी;
उलझ गए हम यूँ उलझन में,
निकल सका न कोई भी हल।
हारेंगे ना हम हारे हैं;
अपने नभ के ध्रुव तारे हैं;
राज़ बतायें अब क्या यारों,
पहले भी थे अब भी मुकम्मल।
अपनों की तादात बहुत है,
फिर भी ख़ाली जीवन के पल ..................।।

Aug 12, 2010

शलभ सरीखे

जब जब कुछ भी लूटा हमने,
तब तब कुछ कुछ लुटे भी हम हैं।
घुल मिल घुल मिल रहते रहते,
कभी कभी कुछ कटे भी हम हैं।
बचपन में थी बुद्धि छोटी,
सुख दुःख तब हम समझ न पाए;
युवा काल में स्वप्न सुनहले,
मदमाते से हरदम लहराए;
श्रृंगारित यौवन के स्पर्श से,
तृप्त होने तक सटे भी हम हैं।
जब पहनावे से होते देखा,
जग में मान सम्मान;
हमने भी तब पहने अक्सर,
नए नए परिधान;
लेकिन उसके भीतर भीतर ,
चीथड़ों से फटे भी हम हैं।
आँधी से न डरे कभी भी,
लगा न डर तूफ़ानों से;
गठबंधन जब किया मृत्यु से,
रिश्ता बना शमशानों से;
जब भी वार किया मुसीबतों ने,
डिगे नहीं और डटे भी हम हैं।
क्षण भंगुर से इस जीवन में,
झंझावातों के रहे ठिकाने;
भंवर से उबरे तट में डूबे,
जीवन नइया पार लगाने;
कुछ कुछ तो आराम किया था,
लेकिन ज्यादा खटे भी हम हैं।
हवाओं और तरंगों में हरदम,
निनादित होवे बस ये नारा;
सद्भावों के सौजन्य से फैले,
जन गण मन में भाई चारा;
तभी तो हर त्योहारों पे हरदम,
ख़ुशी मनाने जुटे भी हम हैं ।
अपनी सारी व्यथाओं के संग,
काल धार में बहे बहे हम;
शलभ सरीखे आत्माहुति को,
हरदम ही तैयार रहे हम;
रुष्ट रहे थे अनिर्णय में तो,
निर्णीत पलों में पटे भी हम हैं।











Jun 5, 2010

तन्हा सफ़र में

एक कता-
हसरतों की दुनिया में क्या जीना
नफ़रतों की दुनिया में क्या जीना
मेरी चाहत मुझसे क्या पूछते हो ;
मतलबों की दुनिया में क्या जीना ।।

ग़ज़ल
जन्मों से थी दिल में वही बेक़रारी ।
कटी ज़िन्दगी न मिटी इन्तेज़ारी ॥
वादे पे जिनके हमें ऐतबार था ,
निभाई गयी न उनसे ही यारी ।
ख़्यालों में आ के वो छेड़े हैं हमको ,
उड़ा के है रख दी नीदें भी सारी ।
कोई जा के उनको मेरा हाल बताये ,
गुज़ारे हैं दिन कैसे रातें गुज़ारी ।
जिनके लिए हमने सितम भी उठाये ,
वही कर रहे शक़ वफ़ा पे हमारी ।
वो बड़े बेवफा और बेदर्द निकले ,
हमारे ही जिगर पे चलाये हैं आरी ।
मसरूफ़ है खुद में हमसफ़र हमारा ,
कहाँ तक निभाएं हम दुनियादारी ।
बहुत थक गए हम तन्हा सफ़र में ,
ख़त्म हो रही है यहीं मेरी पारी ।
किसी मोड़ पे मौत मिलेगी यक़ीनन ,
हमने भी मिलने की कर ली तय्यारी ।
अब तो करम मेरे ख़ुदा कर ही दीजे ,
कि 'राज़' आ गए हैं शरण में तुम्हारी ।

Apr 9, 2010

आँसू

सहेजने की इच्छा से
मैंने आँसू की एक बूंद
अपनी हथेली पर रख कर
मुट्ठी बंद कर ली ;
कुछ ही देर में
क्या देखता हूँ कि
मुट्ठी से आँसुओं की
धार बह चली ;
आँसू की वो एक बूंद
नदी हो गई ;
तब से मेरे आँसू निकले
सदी हो गई ,
इस डर से कि कहीं
सैलाब न आ जाये
और उस सैलाब में कहीं
ये संसार न समा जाये ॥

Apr 6, 2010

संवेदना की शून्यता

हाथ में लिए रोटी वो
ताकते हुए सितारों को
खा रहा था रोटी
करके छोटी छोटी
तभी अचानक किसी गहरी
सोच में डूब जाता है
और रोटी के बजाय
एक सितारे को खा जाता है
सितारा उसे भा जाता है
छोड़ के हाथ की रोटी
मुँह उठाये भागने लगता है
जाने क्या करता है
सडक पर चमचमाती
गाड़ियों का हजूम
तेज़ रफ़्तार से दौड़ रहा है
लेकिन वो सितारों के लिए
जी जान छोड़ रहा है
इतने में चिंचियाती हुई
गाड़ियाँ रुक जाती हैं
भीड़ चारों ओर
इकट्ठा हो जाती है
दुर्घटना देखती है
आपस में बतियाती है
और एक एक करके
बिखर जाती है
अपने अपने घर
चली जाती है
क्योंकि वो उनमें से
किसी की जान पहचान
वाला नहीं था
उन सब के लिए
अब वो आदमी
जान वाला नहीं था
इसलिए कौन उसे उठाता
संवेदना शून्य समाज
आखिर क्यों उसे
कफ़न ओढ़ाता ॥

Mar 20, 2010

हम बेज़ार नहीं

एक कता- ज़िन्दगी की आस के लिएजला कर विशवास के दिए
आम जैसे हो कर भी हम ; जहाँ में कुछ ख़ास से जिए

हम ज़िन्दगी से बेज़ार नहीं लगते
अश्क बरसने के आसार नहीं लगते
हर हाल में क़ायम है खुश मिज़ाजी ;
तबस्सुम के हौसले बेकार नहीं लगते
जहाँ पोशीदा हो खुशियों की जवानी ;
वहां ग़म कभी सदाबहार नहीं लगते
जिन्हें हासिल हो ज़न्नत का क़रार ;
उनके जज़्बात कभी बेक़रार नहीं लगते
जो जीते हैं मक्कारी और फ़रेब की ज़िन्दगी ;
वो यक़ीनन हमें होशियार नहीं लगते
खुदगर्ज़ हुक्मरानों की इस दुनिया में ;
गरीबों के घरौंदे गुलज़ार नहीं लगते
जंगे हयात में गिर के जो उठे 'राज़';
वो हमें क़ामयाब शहसवार नहीं लगते

Feb 7, 2010

अहंकार नहीं होता

सच्चे ज्ञानियों को अहंकार नहीं होता ।
किसी तरह उनमें विकार नहीं होता ॥
ज्ञान ही उन्हें देता है सफलतायें ;
उनका जीवन कभी लाचार नहीं होता ।
सबसे मिलता है जो झुक कर हमेशा ;
उसका बिगड़ा हुआ संस्कार नहीं होता ।
उपकार करके यदि भुला दिया जाये ;
तो इससे बड़ा कोई उपकार नहीं होता ।
ज्ञान का भौतिक रूप कहाँ है यारों ;
सच, उसका कोई आकार नहीं होता ।
सच्चे अनुयायी न मिलने पर "राज़";
ज्ञानियों का सपना साकार नहीं होता ॥