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Feb 7, 2010

अहंकार नहीं होता

सच्चे ज्ञानियों को अहंकार नहीं होता ।
किसी तरह उनमें विकार नहीं होता ॥
ज्ञान ही उन्हें देता है सफलतायें ;
उनका जीवन कभी लाचार नहीं होता ।
सबसे मिलता है जो झुक कर हमेशा ;
उसका बिगड़ा हुआ संस्कार नहीं होता ।
उपकार करके यदि भुला दिया जाये ;
तो इससे बड़ा कोई उपकार नहीं होता ।
ज्ञान का भौतिक रूप कहाँ है यारों ;
सच, उसका कोई आकार नहीं होता ।
सच्चे अनुयायी न मिलने पर "राज़";
ज्ञानियों का सपना साकार नहीं होता ॥

प्रगतिशील बेटा

प्रगतिशील विचारों वाले लड़के से
फ्रेंडशिप डे पर बाप ने
हाथ मिला कर बधाई दी
और तपाक से कहा -
बेटा ! बाप से दोस्ती करोगे ?
तो बेटे ने नाक भौं सिकोड़ कर
अपनी माँ से कहा -
मम्मी, इस फारवर्ड ज़माने में
पापा आज भी कितने "बैकवर्ड" हैं ,
उनके पास मुझसे बात करने के लिए
कुछ विशिष्ट ही तो "वर्ड" हैं ;
मेरे दोस्तों के क्रम में वे "सिक्सटीथर्ड" हैं ।
इसलिए, बाप से और दोस्ती !?!
न ममा न, मुझे अपनी खुशियों का
खून नहीं कराना है ,
और अगले फ्रेंडशिप डे पर तो
पापा से हाथ भी नहीं मिलाना है ॥

Jan 30, 2010

दिल सबसे अच्छी किताब है .

दिल वस्तुतः संसार में सबसे अच्छी किताब है ।
हम यदि अच्छे होवेंगे, तो कोई नहीं ख़राब है । ।
जलन, ईर्ष्या, द्वेष - भावना देती है अपार कष्ट ,
ह्रदय कोष्ठ में बंद रखें, ये उमड़ती हुई चिनाब है ।
रूप-रंग, शरीर- सौष्ठव, यदि सुंदर न हो तो क्या,
नेक दिली ही इन्सान का सर्वोत्तम शबाब है।
निर्व्यस्नित इंसानियत लावें अपने व्यव्हार में,
प्रशस्ति, मान, प्रसिद्धि-प्राप्ति का अच्छा यही हिसाब है।
सुकर्म, शीलता, सौम्यपन, ये मानवता के गहने हैं ,
ओढ़ सको तो ओढ़ लो यारों, अच्छी यही नक़ाब है।
इस 'राज़' की तारीफ़ में लिखे क्या कलम उसकी ,
जो साथ रहे वो ही समझे, क्या राजीव 'राज़' जनाब है ॥

Jan 24, 2010

निर्विवाद रूप से

मेरे मन मस्तिष्क पर
आच्छादित
भय की शाश्वतता जब
मेरी अनुभूतियों का
सानिध्य पाती है तो
निर्विवाद रूप से
इच्छा अनिच्छा की
सीमा तोड़कर
मेरी चेतना पर
संशय उपजा जाती है
तब मैं सन्देहयुक्त
अनिश्चयात्मक
जीवन की भंवर में
बिना पतवार की नाव सा
डूब रहा होता हूँ ॥

Jan 14, 2010

ये दुनिया बड़ी खतरनाक हो गई ।
ख़ुशी की घड़ी दर्दनाक हो गई ।
लुट रही अस्मत सरे राह बच्चियों की ;
फिर एक घटना शर्मनाक हो गई ॥

निज़ाम मदहोश होंगे जब तक ।
एहसान फ़रामोश होंगे जब तक ।
कौन सुनेगा मज़लूमों की आवाज़ ;
लोग ख़ामोश होंगे जब तक ॥

हर तरफ़ देखिये भूखे नंगों की बस्ती ।
देर नहीं लगती यहाँ मिटने में हस्ती ।
क्या था अब क्या है हिन्दोस्ताँ हमारा ;
जहाँ ज़िंदगी महंगी पर मौत है सस्ती ॥

ये उसकी दी हुई निशानी है ।
मेरी अखियों में जो पानी है ।
देता है दिल दुआएं बार बार ;
उस बेवफा की मेहरबानी है ॥

Jan 13, 2010

नया साल आया

हाइकु - काव्य की जापानी विधा जिसमें पहली लाइन में पांच, दूसरी लाइन में सात, एवं तीसरी लाइन में पांच अक्षरों का प्रयोग होता है तथा इसमें मात्राओं एवं आधे अक्षरों का ध्यान नहीं किया जाता । उसी तर्ज़ पर मैंने अपनी विधा "छकुईं" का सृजन किया है । इसमें मात्राओं एवं आधे अक्षरों का ध्यान न रखते हुए प्रत्येक लाइन में छह अक्षरों का प्रयोग किया गया है।
इस विधा की मेरी पहली कृति प्रस्तुत है -

नया साल आया । रंग सारे लाया ।
नया साल आया ॥
सूरज नवीन । चंद्रमा हसीन ।
फिर उगा लाया । नया साल आया ॥
हमनशीन से । तारे ज़मीन पे ।
बिछा कर लाया । नया साल आया ॥
कहीं नहीं झुका । रोके नहीं रुका ।
बेधड़क आया । नया साल आया ॥
ओल्ड को धकेला । बोल्ड हो अकेला ।
गोल्ड बन आया। नया साल आया ॥
होकर निडर । सिल्वर कल्चर ।
सिखाने को आया । नया साल आया ॥
सभी सोल्यूशन । न्यू रिसोल्यूशन ।
बनवाने आया । नया साल आया ॥
विस्तार अपार । लेकर के प्यार ।
दिल में समाया । नया साल आया ॥
भुलाने को ग़म । मस्ती का आलम ।
उठा ही तो लाया । नया साल आया ॥
सभी मुस्कुराएं । व खिलखिलाएं ।
ये सन्देश लाया । नया साल आया ॥
ख़त्म होवें कष्ट । मिटें सारे भ्रष्ट ।
यूँ हरहराया । नया साल आया ॥
नया सा अंदाज़ । छकुईं का राज ।
बढ़वाने आया । नया साल आया ॥
नया साल आया ॥

Jan 11, 2010

ग़ज़ल- ठण्ड ज्यादा थी

धरा से धूप तो सारा दिन बिदकती रही ।
ठण्ड ज्यादा थी, जिंदगी ठिठुरती रही ।।
जवानी पा के सर्दी ने कहर खूब बरपाया,
और हालत गरीबों की यहाँ बिगड़ती रही।
संवेदनहीन से हम सब घरों में दुबके रहे,
बला से हमारे उनकी दुनिया उजड़ती रही।
हाकिमों को कोई चिंता कोई फ़र्क पड़ा,
अलाव थे सड़कों पे मौत बिखरती रही।
कोहरे की चादर में लिपटी सड़क भी,
हठीले हादसों के दौर से गुज़रती रही
काँप रही थी हवा भी शीत के दर से,
ग़र्म बदनों से वो भी लिपटती रही।
गर्मी को भी सर्दी का डर सताता रहा,
इसीलिए वो भी बिस्तरों में दुबकती रही।
ढलना सूरज की मज़बूरी है ऐसा सोच कर,
कल रात भी रातभर तन्हा सुबकती रही।
जन जीवन भी अस्त व्यस्त हो गया था "राज़",
चहलकदमी सभी की यहाँ सिमटती रही।।