लोगों का दर्द बहुत गहरा था ।
मगर उनका खुदा बहरा था ।
सहमे सहमे से लोग थे शहर में ,
मौत का परचम फिर से फहरा था ।
जिनके बच्चे घर से बाहर गए थे ,
डरा हुआ उन माओं का चेहरा था ।
उनकी ऑंखें नम हो न सकीं ,
सूखे आंसू , भीतर अंतहीन सहरा था ।
हंसता मुस्कराता भी कोई कैसे ,
आतंक का मुसलसल पहरा था ।
अभी कल की ही बात हो जैसे ,
ज़ख्म हर किसी का हरा था ।
दगाबाज़ी के जश्न थे हर मोड़ पर,
"राज़" ठिठक कर जहाँ ठहरा था ॥
रुको !!
8 years ago
beautiful expression!
ReplyDeleteहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी टिप्पणियां दें
कृपया वर्ड-वेरिफिकेशन हटा लीजिये
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इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..कितना सरल है न हटाना
और उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानिये