कितने बरस और
इस शहर से सच
नहीं बोलेगा दर्पण ;
हिंसा/हताशा,
कुंठा/निराशा,
असुरक्षा/तमाशा
आदि से बाहर निकल कर
जब सच खोलेगा दर्पण
"तब क्या होगा"
कोई बता सकता है ???
रुको !!
8 years ago
प्यार जिस्मानी अच्छा लगे है.
इश्क रूहानी अच्छा लगे है.
मोहब्बत का जज़्बाती ख़याल;
सारी ज़िन्दगानी अच्छा लगे है.
उनकी उल्फत मेरी मैसहत;
बड़ी मेहरबानी अच्छा लगे है.
मय प्यार की पीकर शब;
खूब मस्तानी अच्छा लगे है.
दौर-ए- वस्ल उभरता पसीना;
उनकी पेशानी अच्छा लगे है.
नज़रें मिली तो यक-ब-यक;
हुई पशेमानी अच्छा लगे है.
उनके करम से मेरे चमन में;
नई निशानी अच्छा लगे है.
उनके दिल में जवान ‘राज’ की;
वही शैतानी अच्छा लगे है.
मैसहत= जिंदगी.
पशेमानी = शर्मिंदगी.